Acharya Vidyasagar Ji Maharaj: आचार्य जैन संत विद्यासागरजी महाराज ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्तिथ चंद्रगिरि तीर्थ स्थान में समाधी ली शनिवार सुबह 2.35 मिनट में शरीर त्याग देवलोक गमन हो गया । Acharya Vidyasagar Ji Maharaj ने तीन दिन पहले से अखंड उपवास और मौन व्रत शुरू कर दिया था सल्लेखना प्रक्रिया द्वारा उन्होंने अपने देह का त्याग किया ।
बता दे वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे आगामी चातुर्मास भी उन्होंने डोंगरगढ़ में ही पूर्ण किया था । डोंगरगढ़ स्तिथ चंद्रगिरि तीर्थ स्थान में शनिवार सुबह 2.35 पर आचार्य विद्यासागर महाराज ने शरीर त्यागा । वही आज रविवार दोपहर 1 बजे पुरे विधि विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया । आचार्य विद्यासागर जी जैन समाज के प्रमुख धर्म गुरुओ में से एक थे ।
कुछ महीने पहले ही विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ दौरे पर आये तब उन्होंने डोंगरगढ़ जाकर जैन आचार्य विद्यासागरजी से आशीर्वाद लिया था जिसकी फोटो उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी । प्रधानमंत्री ने देश के लिए अपूर्णीय क्षति बताया ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य विद्यासागर जी के बारे में अपने X पर लिखा :
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा। पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी। तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था। समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।
Who is Acharya Vidyasagar Ji Maharaj?
आचार्य विद्यासागर जैन समुदाय के एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली धर्मगुरु थे। उन्होंने 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा गांव में जन्म लिया था। उनका पूरा नाम मुनिश्री कान्तिसागर था। 22 साल की उम्र में, उन्होंने संसार को छोड़कर मुनि दीक्षा ली।
आचार्य विद्यासागर के पूर्व, ‘आचार्य ज्ञानसागर’ के समुदाय के मुखिया थे। 1972 में,’आचार्य ज्ञानसागर’ ने सल्लेखना का पालन करते हुए समाधि प्राप्त की। सल्लेखना का मतलब है “प्रतिकूल परिस्थितियों में संतोष”। सल्लेखना की प्रक्रिया में, मुनि कोई भी भोजन, पेय, और बोलना छोड़ देते हैं,और समता,संतोष,और समर्पण की स्थिति में मौन होकर प्राण-त्याग करते हैं।
समाधि का मतलब है “प्रकाशमय”। समाधि प्राप्ति के समय,मुनि के प्राण-तत्व (life elements) सिद्ध-लोक (realm of the liberated souls) में पहुंचते हैं, जहाँ वे मोक्ष (liberation) प्राप्त करते हैं।
समाधि प्राप्ति से पहले, आचार्य ज्ञानसागर ने “मुनि विद्यासागर” को आचार्य-पद (head of the community) सौंपा। 22 नवंबर 1972 को, मुनि विद्यासागर 26 साल की उम्र में आचार्य हुए।
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्रकृत, हिंदी, मराठी, कन्नड, और कुछ अन्य भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में कई पुस्तकें लिखीं। उनकी पुस्तकों का अध्ययन कई शोधार्थियों ने मास्टर्स और डॉक्टरेट की डिग्री के लिए किया है।
आचार्य विद्यासागर का जीवन समाज सेवा, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और आध्यात्मिकता को प्रोत्साहन देने में समर्पित था। प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ ने 2023 में छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरि में आचार्य से मुलाकात करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था।
16 फ़रवरी 2024 को, आचार्य ने ‘सल्लेखना’ का पालन करते हुए समाधि प्राप्ति की प्रक्रिया शुरू की। 18 फ़रवरी 2024 को, सुबह 2:35 बजे,आचार्य का समाधि-प्राप्ति-समारोह हुआ। समाधि-प्राप्ति-समारोह में, निर्यपक मुनि समयसागर महाराज को नए आचार्य का पद मिला।
आचार्य विद्यासागर का समुदाय, समाज,और देश के लिए अपूरणीय क्षति है।
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